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ੴ सत नाम करता पुरख निरभओ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ॥
॥ जप ॥
आद सच जुगाद सच ॥
है भी सच नानक होसी भी सच ॥१॥
सोचै सोच न होवई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होवई जे लाए रहा लिव तार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
सहस सिआणपा लख होहे त इक न चलै नाल ॥
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पाल ॥
हुकम रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल ॥१॥
हुकमी होवन आकार हुकम न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवन जीअ हुकम मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतम नीच हुकम लिख दुख सुख पाईअह ॥
इकना हुकमी बखसीस इक हुकमी सदा भवाईअह ॥
हुकमै अंदर सभ को बाहर हुकम न कोए ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हओमै कहै न कोए ॥२॥
गावै को ताण होवै किसै ताण ॥
गावै को दात जाणै नीसाण ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विद्या विखम वीचार ॥
गावै को साज करे तन खेह ॥
गावै को जीअ लै फिर देह ॥
गावै को जापै दिसै दूर ॥
गावै को वेखै हादरा हदूर ॥
कथना कथी न आवै तोट ॥
कथ कथ कथी कोटी कोट कोट ॥
देदा दे लैदे थक पाहे ॥
जुगा जुगंतर खाही खाहे ॥
हुकमी हुकम चलाए राहो ॥
नानक विगसै वेपरवाहो ॥३॥
साचा साहिब साच नाए भाखिआ भाओ अपार ॥
आखह मंगह देहे देहे दात करे दातार ॥
फेर कि अगै रखीऐ जित दिसै दरबार ॥
मुहौ कि बोलण बोलीऐ जित सुण धरे प्यार ॥
अमृत वेला सच नाओ वडिआई वीचार ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोख दुआर ॥
नानक एवै जाणीऐ सभ आपे सचिआर ॥४॥
थापेआ न जाए कीता न होए ॥
आपे आप निरंजन सोए ॥
जिन सेविआ तेन पाया मान ॥
नानक गावीऐ गुणी निधान ॥
गावीऐ सुणीऐ मन रखीऐ भाओ ॥
दुख परहर सुख घर लै जाए ॥
गुरमुख नादं गुरमुख वेदं गुरमुख रहेआ समाई ॥
गुर ईसर गुर गोरख बरमा गुर पारबती माई ॥
जे हओ जाणा आखा नाही कहणा कथन न जाई ॥
गुरा इक देहे बुझाई ॥
सभना जीआ का इक दाता सो मै विसर न जाई ॥५॥
तीरथ नावा जे तिस भावा विण भाणे कि नाए करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखा विण करमा कि मिलै लई ॥
मत विच रतन जवाहर माणेक जे इक गुर की सिख सुणी ॥
गुरा इक देहे बुझाई ॥
सभना जीआ का इक दाता सो मै विसर न जाई ॥६॥
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होए ॥
नवा खंडा विच जाणीऐ नाल चलै सभ कोए ॥
चंगा नाओ रखाए कै जस कीरत जग लेए ॥
जे तिस नदर न आवई त वात न पुछै के ॥
कीटा अंदर कीट कर दोसी दोस धरे ॥
नानक निरगुण गुण करे गुणवंतेआ गुण दे ॥
तेहा कोए न सुझई ज तिस गुण कोए करे ॥७॥
सुणिअै सिध पीर सुर नाथ ॥
सुणिअै धरत धवल आकास ॥
सुणिअै दीप लोअ पाताल ॥
सुणिअै पोहे न सकै काल ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥८॥
सुणिअै ईसर बरमा इंद ॥
सुणिअै मुख सालाहण मंद ॥
सुणिअै जोग जुगत तन भेद ॥
सुणिअै सासत सिम्रित वेद ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥९॥
सुणिअै सत संतोख ज्ञान ॥
सुणिअै अठसठ का इसनान ॥
सुणिअै पड़ पड़ पावहे मान ॥
सुणिअै लागै सहज ध्यान ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥१०॥
सुणिअै सरा गुणा के गाह ॥
सुणिअै सेख पीर पातिसाह ॥
सुणिअै अंधे पावहे राहो ॥
सुणिअै हाथ होवै असगाहो ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥११॥
मंने की गत कही न जाए ॥
जे को कहै पिछै पछुताए ॥
कागद कलम न लिखणहार ॥
मंने का बहे करन वीचार ॥
ऐसा नाम निरंजन होए ॥
जे को मंन जाणै मन कोए ॥१२॥
मंनै सुरत होवै मन बुध ॥
मंनै सगल भवण की सुध ॥
मंनै मुहे चोटा ना खाए ॥
मंनै जम कै साथ न जाए ॥
ऐसा नाम निरंजन होए ॥
जे को मंन जाणै मन कोए ॥१३॥
मंनै मारग ठाक न पाए ॥
मंनै पत सिओ परगट जाए ॥
मंनै मग न चलै पंथ ॥
मंनै धरम सेती सनबंध ॥
ऐसा नाम निरंजन होए ॥
जे को मंन जाणै मन कोए ॥१४॥
मंनै पावहे मोख दुआर ॥
मंनै परवारै साधार ॥
मंनै तरै तारे गुर सिख ॥
मंनै नानक भवहे न भिख ॥
ऐसा नाम निरंजन होए ॥
जे को मंन जाणै मन कोए ॥१५॥
पंच परवाण पंच परधान ॥
पंचे पावहे दरगहे मान ॥
पंचे सोहहे दर राजान ॥
पंचा का गुर एक ध्यान ॥
जे को कहै करै वीचार ॥
करते कै करणै नाही सुमार ॥
धौल धरम दया का पूत ॥
संतोख थाप रखिआ जिन सूत ॥
जे को बुझै होवै सचिआर ॥
धवलै उपर केता भार ॥
धरती होर परै होर होर ॥
तिस ते भार तलै कवण जोर ॥
जीअ जात रंगा के नाव ॥
सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
एहो लेखा लिख जाणै कोए ॥
लेखा लिखिआ केता होए ॥
केता ताण सुआलिहो रूप ॥
केती दात जाणै कौण कूत ॥
कीता पसाओ एको कवाओ ॥
तिस ते होए लख दरीआओ ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१६॥
असंख जप असंख भाओ ॥
असंख पूजा असंख तप ताओ ॥
असंख ग्रंथ मुख वेद पाठ ॥
असंख जोग मन रहहे उदास ॥
असंख भगत गुण ज्ञान वीचार ॥
असंख सती असंख दातार ॥
असंख सूर मुह भख सार ॥
असंख मोन लिव लाए तार ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१७॥
असंख मूरख अंध घोर ॥
असंख चोर हरामखोर ॥
असंख अमर कर जाहे जोर ॥
असंख गलवढ हत्या कमाहे ॥
असंख पापी पाप कर जाहे ॥
असंख कूड़िआर कूड़े फिराहे ॥
असंख मलेछ मल भख खाहे ॥
असंख निंदक सिर करह भार ॥
नानक नीच कहै वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१८॥
असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥
असंख कहह सिर भार होए ॥
अखरी नाम अखरी सालाह ॥
अखरी ज्ञान गीत गुण गाह ॥
अखरी लिखण बोलण बाण ॥
अखरा सिर संजोग वखाण ॥
जिन एहे लिखे तिस सिर नाहे ॥
जिव फुरमाए तेव तेव पाहे ॥
जेता कीता तेता नाओ ॥
विण नावै नाही को थाओ ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१९॥
भरीअै हथ पैर तन देह ॥
पाणी धोतै उतरस खेह ॥
मूत पलीती कपड़ होए ॥
दे साबूण लईऐ ओहो धोए ॥
भरीअै मत पापा कै संग ॥
ओहो धोपै नावै कै रंग ॥
पुंनी पापी आखण नाहे ॥
कर कर करणा लिख लै जाहो ॥
आपे बीज आपे ही खाहो ॥
नानक हुकमी आवहो जाहो ॥२०॥
तीरथ तप दया दत दान ॥
जे को पावै तेल का मान ॥
सुणेआ मंनिआ मन कीता भाओ ॥
अंतरगत तीरथ मल नाओ ॥
सभ गुण तेरे मै नाही कोए ॥
विण गुण कीते भगत न होए ॥
सुअसत आथ बाणी बरमाओ ॥
सत सुहाण सदा मन चाओ ॥
कवण सु वेला वखत कवण कवण थित कवण वार ॥
कवण सि रुती माहो कवण जित होआ आकार ॥
वेल न पाईआ पंडती जे होवै लेख पुराण ॥
वखत न पाइओ कादीआ जे लिखन लेख कुराण ॥
थित वार ना जोगी जाणै रुत माहो ना कोई ॥
जा करता सिरठी कओ साजे आपे जाणै सोई ॥
किव कर आखा किव सालाही किओ वरनी किव जाणा ॥
नानक आखण सभ को आखै इक दू इक सिआणा ॥
वडा साहिब वडी नाई कीता जा का होवै ॥
नानक जे को आपौ जाणै अगै गया न सोहै ॥२१॥
पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥
ओड़क ओड़क भाल थके वेद कहन इक वात ॥
सहस अठारह कहन कतेबा असुलू इक धात ॥
लेखा होए त लिखीऐ लेखै होए विणास ॥
नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आप ॥२२॥
सालाही सालाहे एती सुरत न पाईआ ॥
नदीआ अतै वाह पवह समुंद न जाणीअहे ॥
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती माल धन ॥
कीड़ी तुल न होवनी जे तिस मनहो न वीसरहे ॥२३॥
अंत न सिफती कहण न अंत ॥
अंत न करणै देण न अंत ॥
अंत न वेखण सुणण न अंत ॥
अंत न जापै किआ मन मंत ॥
अंत न जापै कीता आकार ॥
अंत न जापै पारावार ॥
अंत कारण केते बिललाहे ॥
ता के अंत न पाए जाहे ॥
एहो अंत न जाणै कोए ॥
बहुता कहीऐ बहुता होए ॥
वडा साहिब ऊचा थाओ ॥
ऊचे उपर ऊचा नाओ ॥
एवड ऊचा होवै कोए ॥
तिस ऊचे कओ जाणै सोए ॥
जेवड आप जाणै आप आप ॥
नानक नदरी करमी दात ॥२४॥
बहुता करम लिखिआ ना जाए ॥
वडा दाता तेल न तमाए ॥
केते मंगहे जोध अपार ॥
केतेआ गणत नही वीचार ॥
केते खप तुटहे वेकार ॥
केते लै लै मुकर पाहे ॥
केते मूरख खाही खाहे ॥
केतेआ दूख भूख सद मार ॥
एहे भि दात तेरी दातार ॥
बंद खलासी भाणै होए ॥
होर आख न सकै कोए ॥
जे को खाएक आखण पाए ॥
ओहो जाणै जेतीआ मुहे खाए ॥
आपे जाणै आपे देए ॥
आखह सि भि केई केए ॥
जिस नो बखसे सिफत सालाह ॥
नानक पातसाही पातसाहो ॥२५॥
अमुल गुण अमुल वापार ॥
अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥
अमुल आवह अमुल लै जाहे ॥
अमुल भाए अमुला समाहे ॥
अमुल धरम अमुल दीबाण ॥
अमुल तुल अमुल परवाण ॥
अमुल बखसीस अमुल नीसाण ॥
अमुल करम अमुल फुरमाण ॥
अमुलो अमुल आखिआ न जाए ॥
आख आख रहे लिव लाए ॥
आखहे वेद पाठ पुराण ॥
आखहे पड़े करह वखिआण ॥
आखहे बरमे आखहे इंद ॥
आखहे गोपी तै गोविंद ॥
आखहे ईसर आखहे सिध ॥
आखहे केते कीते बुध ॥
आखहे दानव आखहे देव ॥
आखहे सुर नर मुन जन सेव ॥
केते आखहे आखण पाहे ॥
केते कह कह उठ उठ जाहे ॥
एते कीते होर करेहे ॥
ता आख न सकह केई केए ॥
जेवड भावै तेवड होए ॥
नानक जाणै साचा सोए ॥
जे को आखै बोलुविगाड़ ॥
ता लिखीऐ सिर गावारा गावार ॥२६॥
सो दर केहा सो घर केहा जित बह सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिओ कहीअन केते गावणहारे ॥
गावह तुहनो पौण पाणी बैसंतर गावै राजा धरम दुआरे ॥
गावह चित गुपत लिख जाणह लिख लिख धरम वीचारे ॥
गावह ईसर बरमा देवी सोहन सदा सवारे ॥
गावह इंद इदासण बैठे देवतेआ दर नाले ॥
गावह सिध समाधी अंदर गावन साध विचारे ॥
गावन जती सती संतोखी गावह वीर करारे ॥
गावन पंडित पड़न रखीसर जुग जुग वेदा नाले ॥
गावहे मोहणीआ मन मोहन सुरगा मछ पयाले ॥
गावन रतन उपाए तेरे अठसठ तीरथ नाले ॥
गावहे जोध महाबल सूरा गावह खाणी चारे ॥
गावहे खंड मंडल वरभंडा कर कर रखे धारे ॥
सेई तुधनो गावह जो तु भावन रते तेरे भगत रसाले ॥
होर केते गावन से मै चित न आवन नानक क्या वीचारे ॥
सोई सोई सदा सच साहिब साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाए न जासी रचना जिन रचाई ॥
रंगी रंगी भाती कर कर जिनसी माया जिन उपाई ॥
कर कर वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥
जो तिस भावै सोई करसी हुकम न करणा जाई ॥
सो पातसाहो साहा पातसाहिब नानक रहण रजाई ॥२७॥
मुंदा संतोख सरम पत झोली ध्यान की करह बिभूत ॥
खिंथा काल कुआरी काया जुगत डंडा परतीत ॥
आई पंथी सगल जमाती मन जीतै जग जीत ॥
आदेस तिसै आदेस ॥
आद अनील अनाद अनाहत जुग जुग एको वेस ॥२८॥
भुगत ज्ञान दया भंडारण घट घट वाजह नाद ॥
आप नाथ नाथी सभ जा की रिध सिध अवरा साद ॥
संजोग विजोग दुए कार चलावहे लेखे आवहे भाग ॥
आदेस तिसै आदेस ॥
आद अनील अनाद अनाहत जुग जुग एको वेस ॥२९॥
एका माई जुगत विआई तेन चेले परवाण ॥
इक संसारी इक भंडारी इक लाए दीबाण ॥
जिव तिस भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाण ॥
ओहो वेखै ओना नदर न आवै बहुता एहो विडाण ॥
आदेस तिसै आदेस ॥
आद अनील अनाद अनाहत जुग जुग एको वेस ॥३०॥
आसण लोए लोए भंडार ॥
जो किछ पाया सु एका वार ॥
कर कर वेखै सिरजणहार ॥
नानक सचे की साची कार ॥
आदेस तिसै आदेस ॥
आद अनील अनाद अनाहत जुग जुग एको वेस ॥३१॥
इक दू जीभौ लख होहे लख होवह लख वीस ॥
लख लख गेड़ा आखीअह एक नाम जगदीस ॥
एत राहे पत पवड़ीआ चड़ीऐ होए इकीस ॥
सुण गला आकास की कीटा आई रीस ॥
नानक नदरी पाईऐ कूड़ी कूड़ै ठीस ॥३२॥
आखण जोर चुपै नह जोर ॥
जोर न मंगण देण न जोर ॥
जोर न जीवण मरण नह जोर ॥
जोर न राज माल मन सोर ॥
जोर न सुरती ज्ञान वीचार ॥
जोर न जुगती छुटै संसार ॥
जिस हथ जोर कर वेखै सोए ॥
नानक उतम नीच न कोए ॥३३॥
राती रुती थिती वार ॥
पवण पाणी अगनी पाताल ॥
तिस विच धरती थाप रखी धरम साल ॥
तिस विच जीअ जुगत के रंग ॥
तिन के नाम अनेक अनंत ॥
करमी करमी होए वीचार ॥
सचा आप सचा दरबार ॥
तिथै सोहन पंच परवाण ॥
नदरी करम पवै नीसाण ॥
कच पकाई ओथै पाए ॥
नानक गया जापै जाए ॥३४॥
धरम खंड का एहो धरम ॥
ज्ञान खंड का आखहो करम ॥
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान्ह महेस ॥
केते बरमे घाड़त घड़ीअह रूप रंग के वेस ॥
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥
केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥
केते देव दानव मुन केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंत न अंत ॥३५॥
ज्ञान खंड मह ज्ञान परचंड ॥
तिथै नाद बिनोद कोड अनंद ॥
सरम खंड की बाणी रूप ॥
तिथै घाड़त घड़ीऐ बहुत अनूप ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहे ॥
जे को कहै पिछै पछुताए ॥
तिथै घड़ीअै सुरत मत मन बुध ॥
तिथै घड़ीअै सुरा सिधा की सुध ॥३६॥
करम खंड की बाणी जोर ॥
तिथै होर न कोई होर ॥
तिथै जोध महाबल सूर ॥
तिन मह राम रहिआ भरपूर ॥
तिथै सीतो सीता महिमा माहे ॥
ता के रूप न कथने जाहे ॥
ना ओह मरह न ठागे जाहे ॥
जिन कै राम वसै मन माहे ॥
तिथै भगत वसह के लोअ ॥
करह अनंद सचा मन सोए ॥
सच खंड वसै निरंकार ॥
कर कर वेखै नदर निहाल ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥
जिव जिव हुकम तिवै तिव कार ॥
वेखै विगसै कर वीचार ॥
नानक कथना करड़ा सार ॥३७॥
जत पाहारा धीरज सुनिआर ॥
अहरण मत वेद हथीआर ॥
भओ खला अगन तप ताओ ॥
भांडा भाओ अमृत तित ढाल ॥
घड़ीअै सबद सची टकसाल ॥
जिन कओ नदर करम तिन कार ॥
नानक नदरी नदर निहाल ॥३८॥
सलोक ॥
पवण गुरू पाणी पिता माता धरत महत ॥
दिवस रात दुए दाई दाया खेलै सगल जगत ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरम हदूर ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूर ॥
जिनी नाम धिआया गए मसकत घाल ॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नाल ॥१॥
Amazing Facts About Japji Sahib PDF
Japji Sahib is a sacred text that holds great significance in Sikhism. It is considered to be the foundation of the collection of hymns revered by the Sikh Gurus. Like other religions, Sikhs have their own sacred text which serves as a guide for understanding the divine and finding spiritual enlightenment.
Japji Sahib was the first composition to appear in the Sikh holy book, The Guru Granth Sahib. The Mool mantra of Japji Sahib, “Ik Onkar Satnaam,” is said to have been the first chant ever made by Guru Nanak Dev after his immersion in the Divine for three days in 1499 A.D.
Japji Sahib is comprised of one Mool Chant at the beginning, then 38 Pauris (Stanzas), and finally one Shlok at the end. It is considered a complete piece of writing that helps seekers to be immersed in the love of God and bring purity within.
Guru Granth Sahib is one of the most secular scriptures and contains writings from six Sikh Gurus, 13 Hindu saints, and two Muslim saints. It has 5,894 Shabads, composed of sixty Ragas(rhythm and poetry meters). Japji Sahib is the first 8 pages of the 1,430-page granth.
It is believed that the mool mantra of Japji Sahib is a synthesis of the entirety of Sikh theology, and therefore Guru Granth Sahib is essentially an extension of the mool spell. This mool mantra is repeated 33 times throughout the whole Guru Granth Sahib which is symbolic of several metaphysical aspects.
These facts sound unbelievable sometimes, and that is just the beauty of this text. By reading it daily, you can attract peace and happiness in your life. We hope you will have a great time with it.
Final Words
We hope you will find our Japji Sahib PDF in Hindi useful. Remember that when it comes to divinity, everyone has their own beliefs and it’s important to follow what resonates with you personally. To continue learning more about Japji Sahib, you can visit the website www.TheDarshika.com, where we are soon bringing Japji Sahib with meaning PDF in Hindi, English, and Punjabi translations.
We also have study material and other informative content on our website. If you enjoyed this article, be sure to share it with your friends and family members. Don’t forget to leave a comment if you have any questions.